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इलेक्टोरल बॉन्ड स्कैम: चंदा दो तो धंधा दूंगा, नहीं तो ईडी का फंदा" Explained by Dhruv Rathee
आपका पैसा चोरी हो गया है देश की सारी पब्लिक का पैसा लूट लिया गया है आजाद भारत के इतिहास का यह शायद से सबसे बड़ा स्कैम है यह कहना है यूट्यूब पर ध्रुव राठी का जिन्होंने हाल ही में अपना एक वीडियोलॉन्च किया जिसमें उन्होंने इलेक्ट्रो बॉन्ड के बारे में बताया है। आई बताते हैं उन्होंने इलेक्ट्रो बॉन्ड को एक बिग स्कैम के रूप में कैसे बताया उन्होने कहा कि बिल्कुल भी नई बात यह है कि यह बॉन्ड स्कैम कोई घोटाला नहीं है घोटालों का भंडार है कितनी लंबी लिस्ट है कि आप गिनते गिनते थक जाएंगे और इतना ही नहीं इसके साथ साथ ये देश का सबसे बड़ा एक्स्ट्राशन रैकेट भी है इसमें उन्होंने बताते हुए कहा कि एग्ज़ैक्ट्ली क्या हुआ है इस समझना है तो इस पूरे घोटाले के भंडार को एक लाइन में सम्मराइज़ करना हुआ तो इसे कुछ इस तरीके से किया जा सकता है तुम मुझे चंदा दो मैं तुम्हें धंधा दूंगा और चंदा नहीं दिया तो ईडी का फंदा दूंगा इस चंदा धंधा मॉडल की बात उन्होंने 2017 में भी की थी लेकिन अब हमारे पास इसका सीधे तौर पर सबूत मौजूद हैं 2017 की बात है जब मोदी सरकार ने ये इलेक्ट्रोबॉन्ड स्कीम इंट्रोड्यूस करी थी और इसे एक चंदा लेने का जरिया बनाया पॉलिटिकल पार्टीज की स्कीम में सारी चीज़ करी जाती है जनता से छुपाकर कौन सी कंपनियां किन पार्टियों को कितना पैसा देंगी इसका कुछ नहीं पता चलना था उन्होंने कहा कि मैंने 7 साल पहले ही इस घोटाले के ऊपर खुलकर बोला था उन्होंने कहा कि 22 मार्च 2017 करप्शन का लीड दिन है इंडिया कंपनी को यह बताने की जरूरत नहीं है की वो किस पॉलिटिकल पार्टी को डोनेट कर रही है अपना पैसा ये तो सुप्रीम कोर्ट का हम सबको धन्यवाद करना चाहिए कि 7 साल बाद इस स्कीम को अनकॉन्स्टिट्यूशनल घोषित कर दिया गया और ये जो सारे घोटाले इन सात सालों में हुए और ये बाहर आ रहे हैं हमें पता लग पा रहे हैं उन्होने कहा कि हाल ही में हुई इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में होम मिनिस्टर अमित शाह ने खुलेआम झूठ बोला है इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर इन्होंने कहा कि टोटल बॉन्ड 20,000 करोड़ रुपए की बेची गई जिनमें से बीजेपी को सिर्फ 6000 करोड़ की मिली तो बाकी 14,000 करोड़ के बॉन्ड किस के पास गई भारतीय जनता पार्टी को अप्रॉक्समट्ली 6000 करोड़ के बॉन्ड मिली टोटल 20,000 करोड़ के 14,000 करोड़ के बॉन्ड कहा से आ गए इनके सामने एक टीवी न्यूज़ एंकर भी बैठे थे जो या तो ये भूल गए या फिर हिम्मत नहीं हुई इनकी अमित शाह को फैक्ट चेक करने की क्योंकि आस्परिसीआई डेटा टोटल बॉन्ड 20,000 करोड़ की नहीं बल्कि 12,700 करोड़ की थी अप्रैल 2019 और जनवरी 2024 के बीच में जो इनकैश करी थी इस 12,000 करोड़ में से बीजेपी के पास 6000 करोड़ के बॉन्ड गयी थी जो की 47.5% होता है इसी समय के बीच जो दूसरे नंबर पर पार्टी थी वो थी टीएमसी जिन 1600 करोड़ के बॉन्ड से मिले यानी 12.6% थर्ड नंबर पर कांग्रेस 1400 करोड़ के साथ जो की 11.1% होता है चौथे नंबर पर बीआरसी 1200 करोड़ के साथ पांचवें पर बीजेडी 700 करोड़ के साथ छठे पर डीएम के 600 करोड़ उसके बाद वाईएसआर 300 करोड़ टीडीपी 200 करोड़ शिवसेना 150 करोड़ पर बाकी जो पार्टी आरजेडी जेडीएस से लेकर 70 के बीच में चंदा मिला इस लिस्ट को देखने के बाद कई बीजेपी पॉलिटिशियन बहाना मारते है कि बीजेपी तो बहुत बड़ी पार्टी है 300 से ज्यादा MP से इतने सारे MLA हैं हजारों पार्टी वर्कर्स हैं तो उन्हें ज्यादा चंदा मिल रहा है तो कुछ ज्यादा नही है ना और अगर हम चंदा कलेक्टेड पर MP के रेशियो निकालेंगे तो बीजेपी की ये रेशो बाकी पार्टियों से कम निकलती है इसका मतलब बीजेपी उतनी बुरी नहीं है जितनी और पार्टियां हैं जैसा मैंने आपको पहले बताया स्कैम यहाँ पर है तुम मुझे चंदा दो मैं तुम्हें धंधा दूंगा चंदा नहीं दिया तो ईडी का फंदा दूंगा लेकिन अपने आप में सिर्फ चंदा देना या चंदा लेना ये कोई स्कैम नहीं है डोनेट तो कोई भी कर सकते हैं पॉलिटिकल पार्टीज़ को लेकिन अगर डोनेशन के बदले उन्हें कोई कॉन्ट्रैक्ट दिया जाता है जनता के टैक्स का पैसा उन्हें दिया जाता है और जो कंपनी कमिशन नहीं देती उन्हें ईडी का फंदा दिया जाता है असली घोटालों का भंडार तब होता है उन्होंने आगे उदाहरण देकर बताते हुए कहा कि कल को सोचो विजय माल्या नीरव मोदी ये कहने लगे की भाई हमारी तो इतनी ज्यादा बड़ी कंपनियां इतने ज्यादा एंप्लॉयीज है इसलिए हमने इतने सारे रुपये लूट लिए पर एम्प्लॉई लूट की कैलकुलेशन करो तो हम इतने बड़े चोर नहीं है और लोगों के ऑब्जेक्शन ये नहीं है कि विजय माल्या ने इतने करोड़ रुपए क्यूँ कमाए पैसे कमाना कुछ गलत चीज़ नहीं है ऑब्जेक्शन ये है की जनता का पैसा लूटकर ले गए किसी को इस बात से नहीं है कि बीजेपी ने चंदा क्यों लिया दिक्कत इस बात से है की चंदा लेने के लिए जहाँ एक बड़ा एक्स्ट्राशन रैकेट चलाया डेमोक्रैसी की धज्जियां उड़ाई और जनता का पैसा लूटा अमित शाह ने जो खुलेआम झूठ बोला था वही झूठ बीजेपी पॉलिटिशियन आरपी सिंह ने भी दोहराया था और दैनिक जागरण इंडिया टुडे इन सबने इसी झूठ को बिना चेक किये पब्लिश भी कर दिया झूठ पकड़ना तो छोड़ो इंडिया वालो ने तो हेडलाइन में डाल दिया अमित शाह ब्लास्ट टॉप पोज़ीशन। घोटालों की डिटेल्स में जाने से पहले आइए समझते है की इलेक्टोरल बॉन्ड काम कैसे करती थी
इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है।
ये इलेक्टोरल बॉन्ड को आप बेसिकली समझ सकते हो दोस्तों एक कूपन की तरह कंपनी बैंक को जाकर पैसा देती थी और ये कूपन खरीदती थी और ये कूपन जाकर पॉलिटिकल पार्टीस को दे दिया जाता था और पॉलिटिकल पार्टी कूपन्स को रिडीम कर सकती थी और जो बैंक में रखा पैसा था उसे ऐक्सिस कर सकती थी रूल ये बनाया गया था कि अगर कोई भी पॉलिटिकल पार्टी अपनी इलेक्टोरल बॉन्ड को एनकैश नहीं करती कूपन को जाकर रिडीम नहीं करती तो 15 दिन के अंदर अंदर जो भी अनक्लेम्ड का पैसा है वो प्राइम मिनिस्टर रिलीफ फंड में चला जाएगा स्कीम निकली तो एक जर्नलिस्ट थी जिन्होंने सोचा और गहराई से जांच करनी चाहिए इस चीज़ में और टेस्टिंग करने के लिए उन्होंने दो इलेक्टोरल बॉन्ड खुद खरीदी ये जर्नलिस्ट थी पूनम अग्रवाल ये एसबीआइ की पार्लियामेंट ब्रांच पर गई और 5 अप्रैल और 9 अप्रैल 2018 को इन्होंने दो इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदी दोनों की कीमत ₹1000 रही थी इन्होंने जो वीडियो अपलोड किया अपने चैनल पर उस पर जाकर देख सकते हो की इलेक्टोरल बॉन्ड पर खरीदने वाले का नाम नहीं लिखा था ना ही कोई और डिटेल लिखी थी कि इसे किसने खरीदा है देखने में ये दोनों बॉन्ड जो इन्होंने खरीदी थी एग्ज़ैक्ट्ली सेम लग रही थी। यहाँ पर 5 अप्रैल दिखाई यहाँ पर 9 अप्रैल लिखा हुआ इस दो चीज़ के अलावा पूरे बॉन्ड में कहीं भी कोई डिफरेंस नहीं है जब इन्होंने एक बॉन्ड को फॉरेन्सिक टेस्टिंग के लिए भेजा तो पता चला कि हर बॉन्ड में एक सीक्रेट यूनिक अल्फान्यूमेरिक नंबर लिखा हुआ है ये सीक्रेट नंबर सिर्फ अल्ट्रा वॉलेट लाइट के नीचे दिखता है ये बड़ी शॉकिंग चीज़ थी क्योंकि इस खुलासे से मोदी सरकार का एक और झूठ पकड़ा गया सरकार अभी तक कहती आ रही थी की जो भी इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदेगा हम उसकी आइडेंटिटी छुपाकर रखे किसी को नहीं पता चलेगा की किसने बॉन्ड खरीदी है जब ये खुलासा किया गया तो फाइनैंस मिनिस्ट्री को ओपनली मानना पड़ा की यहाँ एक सीक्रेट यूनिक नंबर है लेकिन फिर ये कहने लगे की हम जानते हैं नंबर है लेकिन यह एक सिक्योरिटी फीचर है इस नंबर के जरिए किसी भी डोनेशन को ट्रैक नहीं किया जा सकता और पता नहीं लगाया जा सकता कि खरीदने वाला कौन है उस वक्त के फाइनांस मिनिस्टर लेट अरुण जेटली जी ने तो पार्लियामेंट डिबेट मैं इस पॉइंट को बार बार उठाया अपोजिशन पार्टी को दिलासा दिलाने लगे की चिंता मत करो किसी को नहीं पता लगेगा कौन आपको पैसे डोनेट कर रहे हैं उन्होंने कहा कि हमारी सरकार का इतना बड़ा दिल है की हम अपोजिशन का भी ख्याल रखते हैं कानून बनाते वक्त लेकिन इस बार ये बात भी झूठी थी मोदी सरकार की बार बार झूठ बोलो रिटायर नेवी ऑफिसर लोकेश बत्रा फ्रेंड्स मिनिस्ट्री की एक फाइल मिली कुछ और भी रिकॉर्ड थे जिन्हें रिव्यु किया गया हफपोस्ट इंडिया के द्वारा इन सब में एसबीआइ ने एक्सप्लेन किया कि सिरिअल नंबर्स को रिकॉर्ड किए बिना ऑडिट ट्रेल करना पॉसिबल नहीं होगा बैंक को कैसे पता चलेगा कि यहाँ पर कोई बॉन्ड फोर्स करि जा रही है या नहीं कोई झूठी बॉन्ड बनाकर भी तो बैंक के पास जा सकता है फिर जनवरी 2018 को नोटिफिकेशन आती है जिसके सेक्शन सिक्स फॉर में लिखा होता है SBI को इलेक्टोरल बॉन्ड की डिटेल्स लॉ इनफोर्समेंट एजेंसी को देनी पड़ेगी अगर उन्होंने पूछा तो अगर SBI के पास कभी वो डिटेल्स थी ही नहीं है अगर ऐक्चुअली में डोनर डिटेल्स किसी को नहीं पता चलनी थी तो ये रूल कैसे काम करता इसका मतलब अगर SBI चाहती हैं तो उन्हें हमेशा पता लग सकता था कि कौन सी कंपनी ने डोनेट कर रही है इसका मतलब ऑलरेडी जानते हैं की इंडिया जैसी एजेंसीज़ बिल्कुल कठपुतली बन चुकी है सरकार के हाथों में इसका मतलब तीन चीजें बड़ी साफ हो गई है पहला पब्लिक को तो कभी पता ही नहीं चलना था कि कौन सी पॉलिटिकल पार्टी को कितना चंदा दिया जाता है कौन सी कंपनी चंदा देती है कितने अमाउंट का देती है पब्लिक से सब इन्फॉर्मेशन छुपाई गई दूसरा अपोज़ीशन पॉलिटिकल पार्टीज को भी नहीं पता चलना था कि बीजेपी को कौन सी कंपनी से चंदा देती है और कितना चंदा देती है उन्हें बस अपने चंदे के बारे में पता लगता और तीसरा लेकिन बीजेपी सरकार को सब कुछ पता लगता कौन चंदा दे रहा है कितना चंदा दे रहा है किसी पॉलिटिकल पार्टी को चंदा दिया जा रहा है सारी कंपनीस की जानकारी सरकार के पास हमेशा रहती है मोदी सरकार के लिए एक सीक्रेट हथियार बन गया ऑपोजिशन के खिलाफ़ और ज्यादातर ऑपोजिशन पार्टीज़ इसके बारे में कुछ नहीं पता था अन्टिल रीसेंट्ली को 15 फरवरी को जब सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरी स्कीम को अनकॉन्स्टिट्यूशनल घोषित किया तो उसके पीछे पिटिशन जिसे फाइल किया था सीपीआईएम पॉलिटिकल पार्टी में और कॉमन कॉज़ और असोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स एडीआर नाम के एनजीओ ने ऐडवोकेट प्रशांत भूषण इन के बिहाफ पर बहस कर रहे थे इस स्कीम के खिलाफ़ तो ये कुछ और ऑर्गनाइजेशन्स और लोग जिनका हमें धन्यवाद करना चाहिए जिसकी वजह से यह घोटाला सामने आ पाए सुप्रीम कोर्ट ने बहुत सारी चीजें कहीं स्कीम को लेकर लेकिन दो चीजें बड़ी खास थी पहला तो ये है की जनता को हक है यह पता करने का की पॉलिटिकल पार्टीज को कितना चंदा दिया जाता है और कौन कौन वो चंदा देता है स्कीम जनता के राइट टू इन्फॉर्मेशन के अधिकार के खिलाफ़ थी और दूसरा सुप्रीम कोर्ट ने अपना क्न्सर्न जताया इस चंदा धंधा मॉडल को लेकर कोर्ट ने कहा कि ये कॉन्ट्रिब्यूशनस करी जा सकती है प्यूरली इस बिज़नेस ट्रांजैक्शन्स में चंदा डोनेट कर रही है कुछ रिटर्न में बेनिफिट पाने के लिए इसी सब के बेसिस पर कोर्ट ने SBI को डेटा रिलीज करने को कहा शुरुआत में SBI ने बहुत बहाने मारे नहीं हमें तो तीन महीने का समय लगेगा हम इलेक्शन के बाद ये कर सकते हैं लेकिन कोर्ट ने जब दोबारा से ऑर्डर दिया तो डेटा 2 दिन के अंदर रिलीज हो गया और इलेक्शन कमिशन की वेबसाइट पर इस डेटा को पब्लिश किया गया डेटा जो इलेक्शन कमिशन की वेबसाइट पर पब्लिश हुआ यह दो अलग अलग लिस्ट में बंटा हुआ है पहली लिस्ट बताती हैं कि किन किन कंपनीज़ ने और किन किन लोगों ने इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदी थी कितने रुपयों की और दूसरी लिस्ट बताती हैं कि किन किन पॉलिटिकल पार्टीज़ ने कितने अमाउंट की इलेक्टोरल बॉन्ड को इनकैश किया था लेकिन एसबीआइ ने बड़ी चालाकी से जो नंबर्स थे वो नहीं रिवील की इनके बिना दोनों लिस्ट को एग्ज़ैक्ट्ली एक दूसरे से कनेक्ट करना पॉसिबल नहीं था फिर से जनता से चीजें छुपाने की कोशिश करी गयी एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट ने SBI को डांट लगाई कि इस तरीके से सिलेक्टिव होकर डेटा नहीं पॉलिश कर सकते फिर इन्हें कहा गया कि 21 मार्च तक सारा डेटा पब्लिश करना है अब बाकी जो पॉलिटिकल पार्टीज ही देश में उन सबको अपने अपने डोनर्स की लिस्ट तो पता थीं उन्हें पता था कि उन्हें जो डोनेशन मिली है वो किस ने करी है तो 10 पॉलिटिकल पार्टीज़ ने तो खुद ही से ही अपनी लिस्ट कि सामने रख दी की हम अपना डेटा पब्लिकली रिवील करते हैं SBI करे ना करे ये पार्टीज है समाजवादी पार्टी,आम आदमी पार्टी,नेशनल कांग्रेस पार्टी,जेडीयू जेडीएस,डीएमकेएमकेसी,गोवा की एक पार्टी एमजीपी और सिक्किम की इनके भी ऊपर मैं कहूंगा चार पॉलिटिकल पार्टीज हैं जिन्होंने इलेक्टोरल बॉन्ड कभी एक्सेप्ट करी ही नहीं ऐसा मैटर ऑफ प्रिन्सिपल ये है सीपीआइ, सीपीआइएम ,ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक और सीपीआईएमएल इन पार्टीज़ को किसी और मुददे पर जरूर क्रिटिसाइज किया जा सकता है लेकिन इस मु्द्दे पर इनका जो बैंक वो तारीफ के लायक है और बाकी जो सारी पॉलिटिकल पार्टीज हैं जिन्होंने इलेक्टोरल बॉन्ड को एक्सेप्ट किया और उनके लीडर्स का यही कहना है की हमने इन्हें इसीलिए एक्सेप्ट किया क्योंकि हमने सोचा इस स्कीम आई है तो इसे इस्तेमाल कर ही लेते हैं ये सोचकर कि हमारे डोनर्स को कोई समस्या नहीं होगी वैसे भी सिर्फ चंदा लेने का मतलब ये तो है नहीं की ये स्कैम है आप कहें हैलो हॉउस इस स्थिति में नहीं कि हम कॉन्ट्रैक्ट दे सकते क्या पब्लिक सेक्टर कंपनी को बेच सकें सीबीआई का इस्तेमाल करके धमकी देकर उनसे हफ्ता वसूली कर सकते हैं प्रैक्टिकल पर आते हैं असली घोटालों की बात करते हैं इन सभी घोटालों में तीन एंटिटीज इन्वोल्वड पहला पॉलिटिकल पार्टी जो सत्ता में है बीजेपी हो सकती है या कोई भी और पार्टी जिनकी स्टेट गवर्नमेंट दूसरा बड़ी बड़ी कंपनियां जिन्होंने चंदा डोनेट किया है इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये और तीसरा आम जनता यानी पब्लिक इन तीनों के नीचे एक बक्सा रख देते हैं पॉलिटिकल पार्टी के नीचे जो बक्सा रखा है वो चंदे का डिब्बा कंपनी के नीचे से डब्बा है वो कंपनी के पैसे का डब्बा है और तीसरा पब्लिक के नीचे जो डब्बा है वो सरकारी पैसे यानी जनता के पैसे का डब्बा है अब सोचो अगर सरकार जनता के डब्बे से पैसे निकालकर कंपनी के डब्बे में डाल दें और रिटर्न में कंपनी अपने डब्बे से पैसे निकालकर पार्टी के डब्बे में डाल दें इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए क्या आप इसे एक स्कैम का होगी या नहीं कहोगे ऑब्वियस्ली एक घोटाला है यहाँ पर गरीब लोगों से आम जनता से पैसे लूटे जा रहे हैं और अमीरों को दिए जा रहे हैं ये एग्ज़ैक्ट्ली कैसे किया जा रहा है तीन को एग्ज़ैम्पल से समझते हैं पहला है टैक्स इवेजन जो कंपनियां टैक्स पे नहीं करती ढंग से टैक्स ना पे करने का मतलब है कि हमारे जनता के बक्से में पैसा नहीं आ रहा है इसका मतलब सरकारी एंप्लॉयीज को अपनी सैलरी टाइम पर नहीं मिलेगी सरकारी जॉब्स में रिक्रूटमेंट नहीं होगी स्कूल हॉस्पिटल की कंडीशन्स इम्प्रूव नहीं करी जा सकेगी क्योंकि जनता का पैसा जो जनता की भलाई के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था यहाँ पर कमी हो रही है अब ऐसे केस में अगर कोई कंपनी अपने टैक्सेस पे नहीं कर रही है तो सरकार को क्या करना चाहिए उस पर रेड करी जाए लेकिन रेड करने की जगह सोचकर देखो एक सौदेबाजी कर ली थी कि तुम हमारी पॉलिटिकल पार्टी को चंदा दे दो और जो तुमने जनता का पैसा चुकाया है हो जाए भाड़ में कोई बात नही क्रोनोलॉजी समझ लीजिए समझ लीजिए इलेक्टोरल बॉन्ड की लिस्ट में टॉप फाइव डोनर कंपनियों को देखिए इन पांच में से तीन कम्पनीज़ है फ्यूचर मेघा इंजीनियरिंग और एक माइनिंग जाइंट वेदांता इन सब कंपनियों पे ईडी और इनकम टैक्स की रेड पड़ी थी इन्फैक्ट 30 डोनर्स को एनालाइज की और पता चला कि टॉप 30 में से 14 कंपनियों पर रेड पड़ी थी एजेंसीज़ की अब एक तो ये चीज़ हो सकती है की कंपनी ने कुछ गलत नहीं किया था कंपनी ईमानदार थी लेकिन ऐसे केस में सरकार ने कहा कि तुम ईमानदार हो तो क्या हुआ हमें तो तुम्हारा पैसा चाहिए इसलिए चुपचाप निकाल लो बेसिकली सरकार ने यहाँ पर एक्सटोर्शन करें यही कारण है कि कांग्रेस पॉलिटिशियन राहुल गाँधी ने प्रधानमंत्री मोदी को वसूली भाई बुलाया लेकिन दूसरों की सोच सकता है कि कंपनी ने एक्चुअली मैं यहाँ पर मनी लॉन्ड्रिंग करी हो घोटाला किया हो लेकिन सरकार ने कहा कि मनी लॉन्डरिंग कर रहे हो टैक्स की चोरी कर रहे हो यानी जनता के पैसे को चुरा रही हो कोई बात नहीं चुरा लो बस हमारी पार्टी को चंदा दे दो अब कुछ लोग यहाँ पर कहेंगे की ये चंदा धंधा का मॉडल चल रहा है चलते रहने दो हमारे को इससे क्या प्रॉब्लम हो रही है पहली प्रॉब्लम तो यह है कि देखो सरकार का पैसा जनता का पैसा है रूल बनाए गए हैं कि सरकार को किस तरीके से उस पैसे को स्पेंड करना है जनता के पैसे खर्च करते हुए किसी भी अफसर को उतना ही चौकन्ना होना चाहिए जितना की ठीक ठाक बुद्धि वाले का हम इंसान अपना पैसा खर्च करते वक्त चौकन्ना होता है और किसी भी पब्लिक प्रोजेक्ट का कॉन्ट्रैक्ट अपनी मनमर्जी से किसी भी कंपनी को नहीं दे सकते नोटिस इश्यू करते वक्त अलग अलग एलिजिबिलिटी क्राइटिरिया होते हैं मिनिमम लेवल ऑफ एक्सपीरियंस कितना है कंपनी का पास परफॉरमेंस कैसी है उसकी उस कंपनी में टेक्निकल कैपेबिलिटी है इस पुल को बनाने की या नहीं उसकी मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटीज कैसी है उस कंपनी की फाइनैंशल पोजिशन कैसी ये सारी चीजें देखकर एक कंपनी को कॉन्ट्रैक्ट दिया जाता है कि कौन अच्छी क्वालिटी का काम करके देगा और कौन सही दाम में इस काम को करके देगा कहीं ऐसा तो नहीं है ओवर चार्ज कर रहे हैं और जनता के टैक्स का पैसा लूटा जा रहा है आप सबको याद होगा उत्तराखंड में जो सुरंग गिरी थी इस मजदूर ट्रैप हो गए थे उसके अंदर उस सुरंग को बनाने का जो कॉन्ट्रैक्ट था पता है किस कंपनी को दिया गया था नवयुग इंजीनियरिंग नाम की कंपनी को इस कंपनी ने 2019 और 2022 के बीच में 55,00,00,000 की इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदी थी एक और दिसंबर 2021 में अहमदाबाद में एक अन्डर कंस्ट्रक्शन फ्लाईओवर नीचे गिर गया था इस फ्लाइओवर को बनाया जा रहा था रणजीत बिल्डकॉन नाम की कंपनी के द्वारा यह तीसरा इंसिडेंट था जब कंपनी को इन्वॉल्व करते हुए इन्क्वाइरी हुई तो पता चला इस कंपनी ने कॉन्क्रीट और कंस्ट्रक्शन की क्वॉलिटी पर कॉंप्रमाइज़ किया था गुजरात की कई बॉडीज में ढेर सारे अलग अलग प्रोजेक्ट्स भी दिए गए वडोदरा राजकोट सूरत अहमदाबाद का गांधीनगर का मेट्रो आदि यह सारी चीज दूर रहती। यह सारी चीज ध्रुव राठी ने अपने वीडियो में बताइए जिसे हमने उनके वीडियो से प्राप्त की है और अपने दर्शको तक पहुंचाने की कोशिश की है। इसमें हमारे द्वारा केवल उनके द्वारा जो विडियो में बताया गया है उसे प्रस्तुत किया है इसमें हमारी कोई रिसर्च और राय शामिल नहीं है।