"असम में मिया मुसलमानों के लिए CM हेमंत बिस्वा सरमा की शर्तें: बहुविवाह और बाल विवाह छोड़ें, मदरसों में शिक्षा न दें तभी मिलेगी स्वदेशी मान्यता"

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असम में स्वदेशी मान्यता के लिए मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा की शर्तें: बहुविवाह और बाल विवाह का त्याग, शिक्षा पर जोर

असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने बंगाली भाषी मुसलमानों के समक्ष राज्य के खिलोनजिया स्वदेशी की मान्यता प्राप्त करने के लिए कुछ शर्तें रखी हैं। उन्होंने स्पष्ट किया है कि बाल विवाह और बहुविवाह जैसी प्रथाओं का त्याग करना होगा और बच्चों को मदरसों की जगह स्कूलों में शिक्षा दिलानी होगी। इसके अलावा, उन्होंने दो से अधिक बच्चे न पैदा करने और नाबालिग बेटियों की शादी न करने की शर्त भी रखी है।


मुख्यमंत्री सरमा ने यह भी कहा है कि असमिया संस्कृति में लड़कियों की तुलना शक्ति से की जाती है और दो-तीन बार शादी करना उस संस्कृति का हिस्सा नहीं है। उन्होंने बंगाली भाषी मुसलमानों से असमिया रीति-रिवाजों का पालन करने का आह्वान किया है।


शिक्षा के महत्व पर जोर देते हुए, मुख्यमंत्री ने मिया मुसलमानों से मदरसों की बजाय मेडिकल और इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में फोकस करने की अपील की है। उन्होंने बेटियों को पढ़ाने और उन्हें पैतृक संपत्ति के अधिकार देने की भी बात कही है।


असम कैबिनेट ने 2022 में असमिया भाषी मुसलमानों को स्वदेशी मान्यता दी थी, जिससे उन्हें बांग्लादेशी प्रवासियों से अलग किया जा सके। इस निर्णय से गोरिया, मोरिया, जोलाह, देसी और सैयद जैसे समूहों को लाभ हुआ है।


मुख्यमंत्री सरमा का दावा है कि 2026 तक असम से बालविवाह प्रथा को समाप्त कर दिया जाएगा। इस दिशा में, राज्य मंत्रिमंडल ने असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम, 1935 को निरस्त करने का निर्णय भी मंजूरी दी है।


"असम में मिया मुसलमानों के लिए CM हेमंत बिस्वा सरमा की शर्तें: बहुविवाह और बाल विवाह छोड़ें, मदरसों में शिक्षा न दें तभी मिलेगी स्वदेशी मान्यता"

 आर्टिकल के मुख्य बिंदु हैं:

1. असम के मुख्यमंत्री का बयान: असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने बांग्ला-भाषी मुसलमानों से बाल-विवाह और बहुविवाह जैसी प्रथाओं को छोड़ने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि इन प्रथाओं को छोड़ने पर ही उन्हें राज्य के मूल निवासी 'खिलोंजिया' माना जाएगा।


2. सांस्कृतिक एकीकरण: मुख्यमंत्री ने सांस्कृतिक एकीकरण की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि असमिया रीति-रिवाजों का पालन करने पर बांग्ला भाषी मुसलमानों को भी 'स्वदेशी' माना जाएगा।


3. शिक्षा का महत्व: उन्होंने शिक्षा के महत्व पर बल देते हुए बांग्ला-भाषी मुसलमानों से अपने बच्चों को मदरसों के बजाय स्कूलों में भेजने और उन्हें डॉक्टर और इंजीनियर बनने के लिए प्रोत्साहित करने का आग्रह किया।


4. असम में मुसलमान आबादी: 2011 की जनगणना के अनुसार, असम में मुसलमानों की आबादी राज्य की कुल आबादी का 34% से अधिक है, जिसमें बंगाली भाषी और बांग्लादेश मूल के प्रवासी मुसलमान और असमिया भाषी स्वदेशी मुसलमान शामिल हैं।


5. स्वदेशी मान्यता: 2022 में, असम मंत्रिमंडल ने लगभग 40 लाख असमिया भाषी मुसलमानों को स्वदेशी असमिया मुसलमानों के रूप में मान्यता दी, जिससे वे प्रवासी बंगाली भाषी मुसलमानों से अलग हो गए। इस अंतर को दोनों समूहों के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अंतरों को स्वीकार करने के लिए किया गया था।


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